भारत की वर्तमान राजनीति और भविष्य के लिए चंद चर्चे। जिन धर्मों में धार्मिक परम्पराओं के कारण उपवास का चलन है और दरिद्र को ईश्वर का रूप माना जाता है और इन दोनों परम्पराओं के पालन को मोक्ष अथवा ईश्वर की प्राप्ति का साधन माना जाता है उन धार्मिक समूहों में आर्थिक विकास और समानता के नाम पर लोगों को लामबंद नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि हिन्दू बहुल भारत और नेपाल तथा मुस्लिम बहुल राष्ट्रों में भारी गरीबी, असमानता और उत्पीड़न मिलता है और विकास और आर्थिक वृद्धि के सवाल आम जनों को उद्वेलित नहीं कर पाते हैं। ऐसे देशों में जनता को धार्मिक मुद्दों में उलझा देना बहुत ही सरल होता है। आज भारत के बड़े और प्रबुद्ध मंच पर भाजपा के हिन्दू राजनीति की कठोर आलोचना होती है किंतु चुनावों में भाजपा को पराजित करना लगभग असंभव हो चुका है। इसका सीधा कारण यह है कि आम भारतीय अपने मूल स्वभाव से धार्मिक-कर्मकांडी होता है और आर्थिक समृद्धि के आगे उसे सांस्कृतिक समृद्धि , जो धार्मिकता और कर्मकाण्ड के पुरुत्थान में दिखता है से ज्यादा प्रभावित होता है। सो वह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आमद...
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